शिवाजी महाराज का इतिहास Sunday 22nd of December 2024
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17 वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के विघटन का सूत्रपात आरंभ हो गया। इससे स्वतंत्र राज्यों का विभिन्न क्षेत्रों में उदय हुआ। उनमें राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली राज्य मराठा राज्य था। जिसकी स्थापना शिवाजी ने की थी। मराठों के उत्कर्ष में मराठा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, औरंगजेब की हिंदू विरोधी नीतियों के फलस्वरूप हिंदू जागरण, मराठा संत कवियों का धार्मिक आंदोलन आदि महत्वपूर्ण कारक थे। मराठों के मूल प्रवेश के संदर्भ में आधुनिक इतिहासकारों का मत है कि मराठे आर्य तथा द्रविणों के मिश्रण थे। आजकल जिस प्रदेश को महाराष्ट्र कहा जाता है, मध्य युग में उसमें पश्चिमी समुद्र तट का कोंकण प्रदेश, खानदेश तथा बरार का आधुनिक प्रदेश, नागपुर क्षेत्र, दक्षिण का कुछ हिस्सा तथा निजाम के राज्य का एक तिहाई भाग था। यह भू छेत्र मराठवाड़ा कहलाता था, जो कालांतर में महाराष्ट्र कहलाने लगा।
मराठा राज्य के संस्थापक शिवाजी का जन्म 1627 ईस्वी को पूना के निकट शिवनेर में हुआ था।
शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले बीजापुर राज्य की सेवा में नियुक्त थे, शिवाजी की माता जीजाबाई यादव परिवार की राजकुमारी थी।
शिवाजी के गुरु समर्थ स्वामी रामदास थे। shivaji maharaj history
शिवाजी ने 19 वर्ष की आयु में 1646 ईसवी में कुछ मवाली लोगों का एक दल बनाकर पूना के निकट स्थित तोरण के दुर्ग पर अधिकार कर लिया था।
शिवाजी ने 1646 ईस्वी में ही बीजापुर के सुल्तान से रायगढ़, चाकन तथा 1647 ईस्वी में बारामती, इंद्रपुर, सिंहगढ़ तथा पुरंदर का दुर्ग भी छीन लिया था।
शिवाजी ने 1656 में कोंकण में कल्याण और जावली का दुर्ग भी अधिकृत कर लिया था। shivaji maharaj history
1656 ईस्वी में ही शिवाजी ने अपनी राजधानी रायगढ़ बनाई थी।
1657 ईस्वी में शाहजहां के शासनकाल में शिवाजी का मुकाबला पहली बार मुगलों से हुआ, जब दक्षिण के सूबेदार औरंगजेब ने बीजापुर पर आक्रमण किया और बीजापुर ने मुगलों के विरुद्ध शिवाजी से सहायता मांगी।
औरंगजेब ने 1665 ईस्वी में आमेर के राजा जयसिंह को शिवाजी को नियंत्रित करने को भेजा।
राजा जयसिंह एक चतुर कूटनीतिज्ञ था उसने शिवाजी के अधिकांश शत्रुओं को अपनी ओर मिलाकर शिवाजी के किलों पर अधिकार कर लिया। अंततः शिवाजी को जून 1665 ईस्वी में राजा जयसिंह के साथ संधि करनी पड़ी जो "पुरंदर की संधि" के नाम से जानी जाती है। इस संघ के अनुसार शिवाजी ने अपने कुल 35 दुर्गों में से 23 दुर्ग मुगलों को सौंप दिया और शिवाजी के बड़े पुत्र संभाजी को मुगल दरबार से पांच हज़ारी मनसबदार बनाया गया।
कूटनीति के तहत राजा जयसिंह द्वारा शिवाजी को आगरा स्थित मुगल दरबार में उपस्थित होने के लिए भी आश्वस्त किया गया, राजा जयसिंह ने उनसे कहा कि उन्हें दक्षिण के मुगल सूबों का सूबेदार बना दिया जाएगा। shivaji maharaj story
शिवाजी मई 1666 ईस्वी में मुगल दरबार में उपस्थित हुए, जहां उनके साथ तृतीय श्रेणी के मनसबदारों की भाँति व्यवहार किया गया और उन्हें नजरबंद भी कर दिया गया। लेकिन नवंबर 1666 एचडी में ही वे अपने पुत्र संभाजी के साथ मुगलों की कैद से भाग निकले।
अंततः विवस होकर 1668 ईस्वी में औरंगजेब ने शिवाजी के साथ संधि कर ली और शिवाजी को राजा की उपाधि एवं बराबर की जागीर प्रदान की।
तत्पश्चात 1674 एचडी में शिवाजी ने रायगढ़ के दुर्ग में महाराष्ट्र के स्वतंत्र शासक के रूप में अपनाराजयभिषेक भी कराया और "छत्रपति" की उपाधि भी धारण की।
1677 ईस्वी में कर्नाटक अभियान के दौरान शिवाजी ने जिंजी, मदुरई, बेल्लूर आदि तथा कर्नाटक, तमिलनाडु के लगभग 100 दुर्गों को जीत लिया था। shivaji history
12 अप्रैल 1680 को शिवाजी की मृत्यु हो गई।